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दिल्ली में पैरामेडिकल छात्रा से हुए सामूहिक बलात्कार की जितनी निंदा की जाये कम हैं. दिल्ली में उस छात्रा से हुई दरिंदगी के बाद देश की जनता के आक्रोश से जो आन्दोलन खड़ा हुआ वह स्वत:स्फूर्त है.अब यदि दिल्ली में पैरामेडिकल छात्रा से हुए सामूहिक बलात्कार के दोषियों को फास्टट्रैक कोर्ट में अगर फाँसी की सजा नहीं मिलती है तो ये देश के जनता की भावना से अन्याय होगा.परन्तु इसी बीच पीड़ित लड़की की भावना के साथ वह कर हम इस घटना का एक बौद्धिक पहलू भी अनदेखा कर रहे है वो यह कि जब इस पीड़ित पैरामेडिकल छात्रा के साथ उसका यह पुरुषमित्र रात में सिनेमा का शो देख कर लौट रहा था तब उसने अपने गंतव्य स्थान तक जाने के लिए सार्वजनिक वाहन या ऑटो रिक्शा का प्रयोग क्यों नहीं किया? वह भी तब जब रात में एक महिला मित्र उसके साथ थी. क्या पीड़ित छात्रा के इस पुरुषमित्र में इतना भी धैर्य नहीं था कि वो राष्ट्रिय राजधानी दिल्ली के सार्वजनिक वाहन डीटीसी या ऑटो रिक्शा का इंतज़ार कर सके? आखिर यह मौलिक बात तो हम सभी को अपने घरों में सीखाई जाती है कि जब हमारे साथ कोई महिला हो तो हमे अनजान व सुनसान साधनों और जगहों के प्रयोग करने से बचना चाहिए. फिलहाल अब देश कि केंद्र सरकार को चाहिए कि वो देश कि जनता की आक्रोशित और अहिंसक भावनाओं का सम्मान करते हुए संसद का विशेष सत्र बुलाये और संबिधान संशोधन कर सभ्य समाज के लिए आतंक बनते बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में उम्रकैद और दुर्लभतम अपराध के लिए सजा-ए-मौत का प्रबधान करे. इसके साथ ही इस देश के “कथित” राष्ट्रीय समाचार चैंनलो को इस बात की भी शर्म करनी चाहिए कि वो आज जिस राष्ट्रीय कबरेज का धिढोरा पीटकर देश में महिलाओं के खिलाफ बड़ रहे अपराधों के बिरुद्ध अलख जगाने की बात को कह कर जो आम दर्शक को बेफकूफ बना रहे है इनकी पोल यही पर खुलती है की अभी दो दिन पहले भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर के राजधानी इंफाल में वहाँ की स्थानीय फिल्म अभिनेत्री मोमोको से सरेआम हुई बदसलूकी की देश के “कथित” राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर उस घटना की ना कोई बाईट मजूद है और ना ही सिक्किम से लेकर मिजोरम तक उनका कोई संबाददाता वहाँ मौजूद है. गौरतलब है ही मणिपुर की स्थानीय अभिनेत्री के साथ हुई उस बदसलूकी के बाद दोषियों को अभी गिरफ्तार नहीं किया जा सका है. परन्तु इस पूर्वोत्तर राज्य की स्थानीय फिल्म अभिनेत्री से हुए दुर्व्यवहार का ना तो दिल्ली की जनता में रोष दिखाई देता है और ना ही हमारे देश के “कथित” राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर कोई खबर. हद तो तब हो गयी है जब ४८ घंटे बीतने के बाद भी दोषी पुलिस की गिरफ्त से बाहर बने हुए है और ऐसे में ये “कथित” राष्ट्रीय समाचार चैनल अभी तक अपना संबाददाता मणिपुर भेजने की तैयारी भी नहीं कर रहे है.क्या पूर्वोत्तर के राज्य भारत देश के अंग नहीं है? क्या देश पूर्वोत्तर राज्य के लोग हमारे बहिन-भाई नहीं है? क्या पूर्वोत्तर के लोग ओलिंपिक जैसी प्रतिस्पर्धा में भारत देश का का सिर विश्वपटल पर ऊँचा नहीं करते है? आखिर ये वो सवाल है जिसका समाधान हमारे “कथित” राष्ट्रीय समाचार चैनलों और देश के हर राज्य के निवासियों को काफी शांत तरीके से ढूँढना होगा.
धन्यवाद.
आपका
राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड विजेता),
एम. ए. (जनसंचार),
एवं
भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत
“फेसबुक” पर मुझे शामिल करे : vaishr_rahul@yahoo.com
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