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मित्रो, आज मैरीकॉम फिल्म को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. मेरी समझ में जहाँ तक आता है तो अब तक देश में जितने भी प्रिसिद्ध खिलाडियों पर बायोपिक फिल्मे बनी है वह सभी व्यावसायिक दृष्ट्रि से सफल भी रही है.. जहाँ तक मैरीकॉम फिल्म का सवाल है तो इस फिल्म में हमे पहली बार मणिपुर को देखने और वहां के रीति-रिवाज़ को समझने का भी अवसर प्राप्त हुआ है वास्तव में ऐसा सुन्दर मणिपुर अब तक के भेड़चाल मीडिया से महरूम ही रहा है फिर चाहे वह मणिपुर की अरुम्बा डिश हो या फिर वहां का लोक नृत्य.. फिल्म के मध्यांतर के बाद का भाग हर दर्शको की आखों में आँसू लाने में कामयाब रहा है..फिल्म ने दिखा दिया है कि अगर व्यकि कुछ करने का ठान ले तो फिर सफलता के लिए कोई भौगोलिक दूरी मायने नहीं रखती.. यह फिल्म उन लड़कियों के लिए भी सीख है जो घर से दूर पढ़ने का बहाना बना कर मेट्रो सिटी में तो पहुंच जाती है परन्तु वहां के ग्लैमर की चकाचौंध में फँसकर, सफलता की दर उनसे कोसो दूर चली जाती है.. ऐसे में मैरीकॉम ने मणिपुर से वो सब कर दिखाया जो आज की आधुनिक लड़कियां सिर्फ सोच ही सकती है. ऐसी मैरीकॉम को लाखों सलाम…
धन्यवाद
द्वारा – राहुल वैश्य ( रैंक अवार्ड उपविजेता),
एम. ए. जनसंचार (राज्य पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण, हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग)
एवम
भारतीय सिविल सेवा के लिए प्रयासरत
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